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सात सहेल्यां रे झूलरे / राजस्थानी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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सात सहेल्यां रे झूलरे, पणिहारी जीयेलो मिरगानेणी जीयेलो
पाण्यू चाली रे तालाब, बाला जो
काळी रे कळायण उमडी ए*पणिहारी जीयेलो, मिरगानेणी*जीयेलो,
छोटोडी बूंदां रो बरसे मेह, बालाजो।
आज धराऊं धूंधलो ए पणिहारी..........
मोटोडो धारां रो बरसे मेह, बाला जो।
भर नाडा भर नाडयां ए पणिहारी..........
भरियो-भरियो समंद तलाब, बाला जो।