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गीत तो गाए बहुत जाने अजाने / महावीर शर्मा

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गीत तो गाए बहुत जाने अजाने
स्वर तुम्हारे पास पहुंचे या ना पहुंचे कौन जाने!

उड़ गए कुछ बोल जो मेरे हवा में
स्यात् उनकी कुछ भनक तुम को लगी हो,
स्वप्न की निशि होलिका में रंग घोले
स्यात् तेरी नींद की चूनर रंगी हो,

भेज दी मैं ने तुम्हें लिख ज्योति पाती,
सांझ बाती के समय दीपक जलाने के बहाने।

यह शरद का चांद सपना देखता है
आज किस बिछड़ी हुई मुमताज़ का यों,
गुम्बदों में गूंजती प्रतिध्वनि उड़ाती
आज हर आवाज़ का उपहास यह क्यों?

संगमरमर पर चरण ये चांदनी के
बुन रहे किस रूप की सम्मोहिनी के आज ताने।

छू गुलाबी रात का शीतल सुखद तन
आज मौसम ने सभी आदत बदल दी,
ओस कण से दूब की गीली बरौनी,
छोड़ कर अब रिमझिमें किस ओर चल दीं,

किस सुलगती प्राण धरती पर नयन के,
यह सजलतम मेघ बरबस बन गए हैं अब विराने।

प्रात की किरणें कमल के लोचनों में
और शशि धुंधला रहा जलते दिये में,
रात का जादू गिरा जाता इसी से
एक अनजानी कसक जगती हिये में,

टूटते टकरा सपन के गृह-उपगृह,
जबकि आकर्षण हुए हैं सौर-मण्डल के पुराने।

स्वर तुम्हारे पास पहुंचे या न पहुंचे कौन जाने!