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रंग में बिखरे हुए लफ्ज / रंजना भाटिया
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रंजना (रंजू )भाटिया (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 26 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} Category:कविता <poem> 1).पलक उठा क...)
1).पलक उठा के यूं ही
जब देखा उसने
उभर गया
इन्द्रधनुष
नज़रों में
और एक सपना
जीने को यूं मिल गया..
2).भरे कुछ रंग प्यार के
और कुछ रंग उस में उसने
शायद विश्वास का मिलाया
कहा जब आंखो में आँखे डाल कर
कि अब या न उतरेगा ज़िंदगी से
तो लगा ..
एक यही सच्चा रंगरेज है
जो जानता है कि ..
प्यार और विश्वास के रंग
कभी ज़िंदगी में फीके नही पड़ते..
3).चाह नही है ..
कुछ और तुमसे पाने की
सिर्फ़ चंद रंगो से ..
यह आँचल मेरा रंग देना
एक प्यार का ,
मीठा बोल सतरंगा ..
और महकते फूलों की
आंच सा हर पल ..
इस धड़कते दिल के ..
नाम कर देना!!