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जारी है अभी खेल / रेखा

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मेरी मोहिनी माँ ने
जब मुझे पलने झुलाया
लोरी दी
वह स्वयं सो गई स्वप्न देखती
" मेरा मुन्ना बनेगा राजा"

दूर-दूर बिखरे सुखों की
ताली दे-दे बुलाया उसने
फिर बाँध दिया पलने में
छुन-छुने-सा
जब-तब बजते रहने को

अजस्रधारा यमुना के तट पर
सिखाए उसने
बनाने रेत के घर
धधकते श्मशान की सिकता में
गड़े हमने रेत के संगी-साथी

नभ के नक्षत्रों के बीच
आशाओं को थामे रखना
रूपहली पतंगों-सा
सब सीखा माँ से
गेंद सरीखे उछलते-छिपते
लक्ष्यों के पीछे
भटका गहरे तालाबों में
हर कहीं विषैले नागों को
नथने का साहस ले

जब-जब लौटा
धूल-धूसरित
उसकी बाँहों में
सपने-सा देखा उसने
छाती से चिपका कर मुझको
मुँह खोलूँ-चौंका दूँ माँ को
पर स्थगित कर दिया मैंने
और उसी पल विदा हो गई कहीं
मदालसा विश्व मंच से
गाते हुए यह गीत

"शुद्धो असि बुद्धो असि
निरंजनो असि
संसार माया परिवर्जितों असि
संसार स्वपनं त्यज मोह निद्राँ"

ऐसे ही बीता
कभी बना खिलाड़ी
कभी खिलौना

जारी है अभी खेल
सवाल पाँवों में
हिल-डुल रहे हैं गोल-गेंद से
मैं
कभी गेंद को देख रहा हूँ
कभी खुद को