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नव वर्ष / सौरभ
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‘एक’’’
आओ नववर्ष को नव बनाएँ
खुद को ही दीप बनाएँ
अँधेरों में करें उजियारा
आँधियों को दूर भगाएँ
औरों को दिखाएँ रास्ता
खुद देख सकते हो अगर।
‘दो’’’
कि बीत गया नया वर्ष
दे गया कई मौन संकेत
सब बदला पर नहीं बदला आदमी
कई वर्षों से चला आ रहा यही
वही हिंसा वही भगवान
नई सदी में पुराना आदमी
क्या कर पाएगा कुछ नया
आदमी बाँटे चला जा रहा है
खुद को सब को
आणविक विघटन जब होता है पूर्ण
नहीं बनता सब कुछ भी
न आदमी न मैं न तू।