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तुम भी पूछना चाँद से / हरकीरत हकीर
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जब तुम
लौट जाओगे
मैं पलटूँगी
मौसम के पन्ने
यादों की चिट्ठी से
भर लूँगी
मुठ्ठी में बादल...
कुछ भीगे अक्षर
तपती देह पर रखकर
मैं खोलूँगी
रंगो की चादर...
पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्पर्श के
उन एहसासों को
जो जिंदा होगें
तुम्हारे सीने पर
'ओम' बनकर...
तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...