Last modified on 1 मार्च 2009, at 11:12

शौक़ है उसको ख़ुदनुमाई का / दाग़ देहलवी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:12, 1 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दाग़ देहलवी }} Category:ग़ज़ल <poem> शौक़ है उसको ख़ुदनु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शौक़ है उसको ख़ुदनुमाई का
अब ख़ुदा हाफ़िज़, इस ख़ुदाई का

वस्ल पैग़ाम है जुदाई का
मौत अंजाम आशनाई का

दे दिया रंज इक ख़ुदाई का
सत्यानाश हो जुदाई का

किसी बन्दे को दर्दे-इश्क़ न दे
वास्ता अपनी क़िब्रियाई का

सुलह के बाद वो मज़ा न रहा
रोज़ सामान था लड़ाई का

अपने होते अदू पे आने दें
क्यों इल्ज़ाम बेवफ़ाई का

अश्क़ आँखों में दाग़ है दिल में
ये नतीजा है आशनाई का

हँसी आती है अपने रोने पे
और रोना है जग हँसाई का

उड़ गये होश दाम में फँस कर
क़ैद क्या नाम है रिहाई का