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सद्भाव / कैलाश वाजपेयी
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शब्द बार- बार हमें
बासी पड़े अर्थ की
कुब्जा सतह तक ले जाते हैं
विचार- घास ढका दलदल
विचार हमें तर्क की पेंचदार
खाई में
धक्का दे आते हैं
जबकि सद्भाव
खुला आसमान है
जो आदमी अपने भाई पड़ोसी या दोस्त
या किसी की भी
जलती चिता पर खिचड़ी पकाए
उस आदमी को आदमी
क्यों कहा जाए