भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाहिन भजिबे जोग बियो / तुलसीदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }}<poem> नाहिन भजिबे जोग बियो। श्रीरघुबीर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाहिन भजिबे जोग बियो।
श्रीरघुबीर समान आन को पूरन कृपा हियो॥
कहहु कौन सुर सिला तारि पुनि केवट मीत कियो ?।
कौने गीध अधमको पितु ज्यों निज कर पिण्ड दियो?॥
कौन देव सबरीके फल करि भोजन सलिल पियो?।
बालित्रास-बारिधि बूड़त कपि केहि गहि बाँह लियो?।
भजन प्रभाउ बिभीषन भाष्यौ सुनि कपि कटक जियो।
तुलसिदासको प्रभु कोसलपति सब प्रकार बरियो॥