भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाम से आँख में नमी सी है / गुलज़ार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 11 मार्च 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है

दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं छुपकर
इस की आदत भी आदमी सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है