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सौंदर्य बोध / कैलाश वाजपेयी
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अभी-अभी मैंने खिला
देखा है एक कमल
यह कमल पहले नहीं खिला
ऐसा यह कमल अब कभी नहीं होगा
आगे के उजले वर्षों में
कमल को नहीं पता
मैं कमल मुग्ध हो गया हूँ
खिलना-मुरझाना
यों किसी कमल का
साधारण घटना है
रोज़ सैंकड़ों कमल खिलते हैं
यह रहा होगा अंधापन
मेरी आँखों का जो
कमल में , खिलावट नहीं देख सका
कमल को कमल से
इतर नहीं लेख सका
तब फिर मैं क्यों कमल-मुग्ध हो गया हूँ
जबकि कमल अपनी
मर्ज़ी से नहीं खिला
खिले कमल से
अभी
पता नहीं कैसे
मेरा
मेरा नहीं मेरी इन अंधी आंखों का तार
मिल गया है
और एक और कमल
कमल और मेरी
आँखों के बीच खिल गया है