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तक़लीफ़ / कैलाश वाजपेयी

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दुनिया में पाँच अरब लोग हो गए हैं
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
बढ़े हुए लोगों में एक मैं भी हूँ
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
पेड़ नहीं रहे दूर-दूर तक
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
मैंने ख़ुद किसको छाँह दी?
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
लोगों को रोटी नसीब नहीं
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
मेरी रोटी में घी भी शरीक है
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
सरे आम हत्याएँ होती हैं
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
मैं मारे जाने के काबिल क्यों नहीं
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
सब तरफ़ मेरे नरक ही नरक है
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
मेरे नरक की किसी को खबर नहीं
इसकी भी मुझको तकलीफ़ है
सबकी तकलीफ़ भी मेरी तकलीफ़ है
मेरी तकलीफ़ भी मेरी तकलीफ़ है
आखिर तकलीफ़ से छुटकारा क्यों नहीं
बिना तकलीफ़ के गुज़ारा भी
क्यों नहीं.