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धूप-सी नहीं खिल पाती देह / अमिता प्रजापति

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देह के राग
कितने मुश्किल
कितने कठिन
विचार जब गुँथे हों
झाड़ियों की तरह
देह का खिलना कितना मुश्किल
झाड़ियों के अंधेरे में
धूप-सी नहीं खिल पाती देह