देह के राग
कितने मुश्किल
कितने कठिन
विचार जब गुँथे हों
झाड़ियों की तरह
देह का खिलना कितना मुश्किल
झाड़ियों के अंधेरे में
धूप-सी नहीं खिल पाती देह
देह के राग
कितने मुश्किल
कितने कठिन
विचार जब गुँथे हों
झाड़ियों की तरह
देह का खिलना कितना मुश्किल
झाड़ियों के अंधेरे में
धूप-सी नहीं खिल पाती देह