भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब कुछ लूट लिया है / आन्ना अख़्मातवा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 21 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा |संग्रह= }} Category:रूसी भाषा <Poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: आन्ना अख़्मातवा  » सब कुछ लूट लिया है

सब कुछ लूट लिया है
धोखा दिया गया है
बेच दिया है
महा-मृत्यु के काले डैने
ऊपर अपने आकर फैले
कुतर दिया है
भूखी इच्छाओं ने सब कुछ
फिर भी ज्योति-रेख क्यों चमक रही है
अपने सम्मुख

दिन होते ही
नगर-पास का भेद भरा वन
चैरी की ख़ुशबू से
भर उठता है कन-कन
आई निशा
कि निर्मल अम्बर जौलाई का
नए-नए नक्षत्रों से है जगमग करता

नहीं जानता है यह कोई
गन्द भरे टूटे घर जो ये
एक दिव्यता
बहुत क़रीब आ रही इनके
आदि-काल से हम
जिसकी कर रहे कामना


अंग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक