भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी याद का आना / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रज श्रीवास्तव |संग्रह= }} <Poem> हृदय में अजीब-सी स...)
हृदय में अजीब-सी
सिहरन होने लगती है
जैसे ही शुरू होता है
तुम्हारी याद का आना
मन कुलाँचे भरने लगता है
वहाँ नहीं रहता जहाँ था
उचकने लगती है एक उमंग
अक्ल की पौध उगते ही
बदल जाता है जल रेत में
प्यास निराशा के पानी में डूब जाती है
एक नदी की धारा की दिशा बदल दी जाती है
मन को पिलाना होता है
समझौते का पानी
एक अनुभव और दर्ज़ करता हूँ
जीवन की नोट बुक में