भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दस देहों की गंध / अनूप अशेष

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:31, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप अशेष }} <poem> दो कमरे का घर दस देहों की गंध और त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दो कमरे का घर
दस देहों की गंध
और तुम
हर कोने में।

हर बासी सुबहों
बासी ख़बरों में,
लंगड़े पाँवों
दौड़े दिन
ज्यों हवा परों में।

उम्र दोपहर
रात उनींदी
तुम होने में।

एक हँसी काली आँखों में
दूध-चंद्रमा,
बुझी अँगीठी
गर्म-सड़क पर
शिवा-उमा।

सागर-मंथन का
अमृत-विष
एक दोने में।