भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
या रुकी रहूँ यूँ ही... / प्रियंका पण्डित
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:43, 26 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रियंका पण्डित |संग्रह= }} <Poem> एक क़दम आगे बढ़ाऊँ ...)
एक क़दम आगे बढ़ाऊँ
या दो क़दम पीछे
समझ नहीं पाती हूँ
जब भी निकलती हूँ
सब कुछ वहीं छोड़कर
पूरा का पूरा निकलती हूँ
मकान, दीवारें, छतें और
दरवाज़ों की दरारें तक भी
फिर जहाँ पहुँचती हूँ
वहाँ मेरे अलावा बहुत कुछ होता है
मुझे मुझ तक पहुँचने के लिए
समझ नहीं आ रहा
एक क़दम आगे बढ़ाऊँ
या दो क़दम पीछे