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मेरी रचना के अर्थ / रमानाथ अवस्थी

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कवि: रमानाथ अवस्थी

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मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना।

मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं मैं आंख मिलाता हूँ उन आंखों से जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।

आंखों की भाषाएं तो अनगिन हैं जो भी सुंदर हो समझा देना।

पूजा करता हूं उस कमजोरी की जो जीने को मजबूर कर रही है मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से जो मुझको तुमसे दूर कर रही है।

दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना।

कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा संकेत कर रहा नभ वाला घन प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा।

पर मैं खुद ही प्यासा हूं मरुथल सा यह बात समंदर को समझा देना।

चांदनी चढ़ाता हूं उन चरणों पर जो अपनी राहें आप बनाते हैं आवाज लगाता हूं उन गीतों को जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं।

मधुवन में सोये गीत हजारों हैं जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना।