भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं हूँ तीस्ता नदी ! / शार्दुला नोगजा

Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:33, 2 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शार्दुला नोगजा }} <poem> मैं हूँ तीस्ता नदी, गुड़मुड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मैं हूँ तीस्ता नदी, गुड़मुड़ी अनछुई
मेरा अंग अंग भरा, हीरे-पन्ने जड़ा
मैं पहाड़ों पे गाती मधुर रागिनी
और मुझ से ही वन में हरा रंग गिरा ।
 
'पत्थरों पे उछल के संभलना सखि'
मुझ से हंस के कहा इक बुरुंश फूल ने
अपनी चांदी की पायल मुझे दे गयी
मुझेसे बातें करी जब नरम धूप ने ।
 
मैं लचकती चली, थकती, रुकती चली
मेरे बालों को सहला गयी मलयजें
मुझ से ले बिजलियाँ गाँव रोशन हुए
हो के कुर्बां मिटीं मुझ पे ये सरहदें ।
 
कितने धर्मों के पाँवों मैं धोती चली
क्षेम पूछा पताका ने कर थाम के
घंटियों की ध्वनि मुझ में आ घुल गयी
जाने किसने पुकारा मेरा नाम ले ।
 
झरने मुझसे मिले, मैं निखरती गयी
चीड़ ने देख मुझ में संवारा बदन
आप आये तो मुझ में ज्यों जां आ गयी
आप से मिल के मेरे भरे ये नयन ।
 
मैं हूँ तीस्ता नदी, गुड़मुड़ी अनछुई !