हमारे ऐसे भाग्य कहाँ / शैल चतुर्वेदी
एक दिन अकस्मात
एक पूराने मित्र से हो गई मुलाकात
हमने कहा-"नमस्कार।"
वे बोले-"ग़ज़ब हो गया यार!
क्या खाते हो
जब भी मिलते हो
पहले से डबल नज़र आते हो?"
हमने कहा-"छोड़ो भी यार
यह बताओ तुम कैसे हो?"
वे बोले-"गृहस्थी का बोझ ढो रहे हैं
जीवन ही बगिया में आँसू बो रहे हैं
कर्म के धागों से
फटा भाग्य सी रहे हैं
बिना चीनी की चाय पी रहे हैं।"
हमने पूछा-"डायबिटीज़ है कहाँ?"
वे बोले-"हमारे ऐसे भाग्य कहाँ!
डायबिटीज़ जैसे राजरोग
बड़े-बड़े लोगों को होते हैं
हम जैसे कंगालो को तो
केवल बच्चे होते हैं
तुम्हारे कितने हैं?
हमने कहा-"हमें तो डायबिटीज़ है
तुम क्या जानो
कितनी बुरी चीज़ है!"
वे बोले-"बुरी चीज़ है तो मुझे दे दो
और बच्चे मुझसे ले लो।"
हमने पूछा-"कितने हैं?"
वे बोले-"जितने चाहो उतने हैं
सात कन्याएँ हैं
चार गूंगी, दो बहरी
और एक कानी है
ईश्वर की महरबानी है।"
हमने पूछा-"भाभी की हैल्थ वैल्थ?"
वे बोले-"हैल्थ ही हैल्थ है
वैल्थ के लिए तो हम
बरसों से झटके खा रहे हैं।
आम की उम्मीद लिए
बबूल में लटके जा रहे हैं
सात कन्याएँ न होतीं
तो आपकी तरह खाते पीते
मौज उड़ाते।
एक दिन डायबिटीज़ के पेशेंट बन जाने
कम से कम