जूता (आठ कविताएँ) / राग तेलंग
1
जूता साफ करता हूं
करते-करते पसीना पोंछता हूँ
इस तरह
जूते को सलाम करता हूँ।
2
जूता
ठोकर खाते-खाते बड़ा हो चला
इस तरह
जूते के साथ
मेरा अनुभव संसार भी बड़ा हुआ ।
3
जूता आपका दोस्त है
भले ही शुरुआत में उसने आपको काटा हो
याद कीजिए
काँटों से गुज़रते हुए
कभी जूते ने आपको कुछ बताया हो ।
4
जूता
किताब की दुकान में पहुँचता
अपनी कीमत से तुलना करने को मना करता
फिर मैं तय करता
किताब खरीदने के बारे में ।
5
जूता
मेरी नाप का बड़ी मुश्किल से मिला
और जब चला तो लंबे समय तक चला
और जब फट चला
तो मैंने सहेजने के बारे में सोचा
जूते को ।
6
जूते
या तो आवाज़ करते हैं
या तो नहीं करते
कौन कहता है
जूते बात नहीं करते !
7
जूते को
पत्थरों से चोट पहुँचाई गई थी
फलत: उसको कई टाँके आए
घर पहुँचा तो
हाल-चाल पूछने
घर के बाकी चप्पल-जूते पास आए ।
8
जूता पहनकर
घर से निकला
पत्नी ने दुआ की
सलामत लौट आने की
सुनकर जूता मंद-मंद मुस्कराया
और वाकई !
वही वापस
सही सलामत लाया ।