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संशय / रघुवीर सहाय

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लेखक: रघुवीर सहाय

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तुम अप्रस्तुत ही रहोगे क्या मरण-पर्यन्त?
जब निकट होगा तुम्हारा बिन बुलाया अंत
आ रहा होगा विगत सुस्पष्ट तुमको याद
मन तुम्हारा स्वस्थ होगा बहु-दिनों के बाद
टंग गयी होंगी तुम्हारी पुतलियाँ निर्धूम
ऐंठती होगी तुम्हारी जीभ मुँह में घूम
कुछ कहोगे उस समय कोई सुसज्जित बात
या कहोगे - बीत जाने दो ना ये भी रात