जो कोई भी मैं होऊँ
देववाणी का दास मैं
नाटक का कलाविलास
भास मैं
कविता में कवि कालिदास मैं
अपने युग का एक व्यास मैं
और समय का नया समास मैं।
फिर भी कुछ नहीं ख़ास मैं॥
धन्य मैं जो धरती के
सबसे सुंदर को धारण कर सका
छोटा से छोटा हो कर भी
प्रिय और विराट
हो सका।