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राम और राम के बीच / कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह

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राम और राम के बीच गायब राम ही होता है,
लड़ता रह जाता है नाम उसका। भीतर से ताला
बंद कर लेता है अल्ला और ईसा बाहर सूली
पर चढ़ता है। नदी पर बांध देने वाला घुटने भर
पानी में डूबता है, अपने आप टूटता पहाड़ तोड़ने वाला।
और जो नया-नया रास्ता निकालता है,टकराताज
रहा है दिशाओं से- हदोंसे, रास्ता अपना बंद कर
लेता है, घुटता है मन के अंधेरे में सूरज जबकि
ठीक उसके सर पर चमकता है। आदमी जहाँ आदमी
नहीं रह जाता, सबसे बड़ा शत्रु पहले आदमी का
होता है। वैसे आदमी कभी कम नहीं था किसी से,
कम नहीं है। मगर आदमी, आदमी वह कहाँ है?