कविता व्यवसाय होती तो / शील
हम कविता का व्यवसाय नहीं करते,
कविता--
वस्तु या पदार्थ नहीं
जिन्स नहीं जादू नहीं।
उत्पीड़ित की देह्पर सवार
विलासी सभ्यता के सिर पर
चढ़कर बोलती है कविता।
अक्षत चेतना के द्वार खोलती
इतिहास को दृष्टि देती है कविता
हम कविता का व्यवसाय नहीं करते!
कविता न बिकती है न खर्च होती है
निरन्तर सम्वेदना को स्वर देती है।
पूंजी तन्त्र में
कविता और न्याय एक वस्तु है
कवि और न्यायिक बिकते हैं
वस्तु की तरह।
पाश और सफ़दर हाशमी की हत्या
इसलिए कि उनकी कविता
निरन्तर सम्वेदना को स्वर देती है।
शोषकों / शासकों के विरुद्ध ऐलान करती है।
कविता देखती है
पंजाब के दहशतज़दा किसान।
मौत से टकराव खेत-खलिहान करते हैं
कविता सुनती हैं
गोली खाए आदमी का हाहाकार
औरतों का विलाप
बच्चों का चीत्कार!
कविता विद्रोह करती है
अब एक क्रौंच पक्षी नहीं
लाख-लाख औरत-मर्द
बच्चों का वध, आर्तनाद!
कविता व्यवसाय होती तो
न वाल्मीकि होते, न तुलसी
न प्रेमचंद, न गोर्की, न लू सुन
और न
कविता हथियारों की तरह
व्यवसाय की वस्तु बन जाती ।
हम कविता को नहीं जीते
कविता हमें जीती है,
हमारा काल बोध
कविता में ढल जाता है।