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संकेत / शंख घोष

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मुझे याद है तुम्हारा संकेत
मैं ठीक पहुँच ही जाऊंगा समय रहते।
आइने के सामने खड़े होने पर बहुत-से बहाने हैं
उन सबको हटाकर
पिछले साल के बाक़ी-बक़ाया में डूबे मन
उन सबको भूलकर
इसके उसके उनके साथ मुलाक़ात हो जाने
बातें कहने-सुनने...
इन सबको पोंछकर
दिन-दोपहर की ओट में
पहुँच ही जाऊंगा आज तुम्हारे संकेत की शाम को
उजड़ गए हाट के थके व्यापारियों के पड़ोस से होकर
गाँव के सिवान के श्मशान में
जहाँ पीपल के झुक आए चेहरे की ओर टकटकी लगाए देख रहा है
ठण्डा गूंगा जल।


मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी