भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले / उमाकांत मालवीय
Kavita Kosh से
जय प्रकाश मानस (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 02:20, 27 अगस्त 2006 का अवतरण
कवि: उमाकांत मालवीय
~*~*~*~*~*~*~*~
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।
कंगना की खनक
पड़ी हाथ हथकड़ी ।
पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।
सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,
हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।
नाजों में पले छैल सलोने पिया,
यूँ न हो अधीर,
तनिक धीर धर पिया ।
बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,
आऊँगी मिलने में पिय दिया जले ।