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पल्लू की कोर दाब दाँत के तले / उमाकांत मालवीय

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कवि: उमाकांत मालवीय

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पल्लू की कोर दाब दाँत के तले

कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।


कंगना की खनक

पड़ी हाथ हथकड़ी ।

पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।


सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,

हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।


नाजों में पले छैल सलोने पिया,

यूँ न हो अधीर,

तनिक धीर धर पिया ।


बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,

आऊँगी मिलने में पिय दिया जले ।