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आज केतकी फूली! / रामकुमार वर्मा
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आज केतकी फूली !
नभ के उज्ज्वल तारों से हो -
निर्मित जग में झूली ।
आज केतकी फूली !
अन्तरिक्ष का बिखरा वैभव
पृथ्वी पर संचित है,
इसीलिए यह कलिका नभ-छवि
ले भू पर कुसुमित है,
पवन चूम जाता है, मेरी
इच्छा से परिचित है,
इस मिलाप मे ही सारे
जीवन का सुख अंकित है ।
मैंने आज प्रेम की उँगली से
वह चिर छवि छू ली !
आज केतकी फूली !
(1922)