भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:17, 29 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल }} <poem> पैबन्द-दर-पैबन्द फटी हुई पतलून ...)
पैबन्द-दर-पैबन्द
फटी हुई पतलून
फिर भी
टांगों में फँसाए रखने का
जुनून।