भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यौवन की दुहाई! तुम मत जाना / नवनीता देवसेन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:12, 30 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=नवनीता देवसेन }} Category:बांगला <poem> असंभव-सा लगता ...)
|
असंभव-सा लगता है यौवन के अंत में बचे रहना
वैसे ही तुम्हारे जाने पर संभव नहीं है यौवन को बचाना।
तुम्हें मैं पुकारती नहीं,
फिर भी मन ही मन जानती हूँ।
कि तुम घर पर हो,
मैं नहीं देखती तुम्हारा चेहरा
फिर भी तुम्हारे चेहरे की छवि मन में उभर आती है।
भले ही अयोग्य हूं मैं -- गोदाम की भिखारिन चुहिया --
जानती हूं करुणा में तुम अब भी
पूरी तरह मेरी ही हो।
कविता! तुम्हें छोड़ कर मैं कब से जी रही हँ!
इस वजह से तुम लेकिन मुझे मत छोड़ देना
अपने सीने में उपेक्षा के साथ ही सही
मुझे पाल कर रखना।
जो तुम घर छोड़ चली जाओगी
तो मैं कौन-से वानप्रस्थ को जाऊंगी!
मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी