भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिट्टी के लोंदों का शहर / विजयशंकर चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 30 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी }}अंतरिक्ष में बसी इंद्रनगर...)
अंतरिक्ष में बसी इंद्रनगरी नहीं
न ही पुराणों में वर्णित कोई ग्राम
बनाया गया इसे मिट्टी के लोंदों से
राजा का किला नहीं
यह नगर है बिना परकोटे का
पट्टिकाओं पर लिखा
हम्मूराबी का विधान यहाँ नहीं लागू
सीढ़ियोंवाले स्नानागार भी नहीं हैं यहाँ
यहाँ के पुल जाते अक्सर टूट
नालियों में होती ही रहती टूट-फूट
इमारतें जर्जर यहाँ की।
द्रविड़ सभ्यता का नगर भी नहीं है यह
यहाँ नहीं सजते हाट काँसे-रेशम के
कतारों में खड़े लोग
बेचते हैं श्रम और कलाएँ सिर झुकाए
करते रहते हैं इंतजार किसी देवदूत का
रोग, दुःख और चिंताओं में डूबे
शाम ढले लौटते हैं ठिकानों पर
नगर में बजती रहती है लगातार कोई शोकधुन।