भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रो रही है बाँझ धरती मेह बरसो रे / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:56, 2 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem>र...)
रो रही है बाँझ धरती , मेह बरसो रे
प्रात ऊसर, साँझ परती, मेह बरसो रे
सूर्य की सारी बही में धूपिया अक्षर
अब दुपहरी है अखरती , मेह बरसो रे
नागफनियाँ हैं सिपाही , खींच लें आँचल
लाजवंती आज डरती , मेह बरसो रे
राजधानी भी दिखाती रेत का दर्पण
हिरनिया ले प्यास मरती , मेह बरसो रे
रावणों की वाटिका में भूमिजा सीता
शीश अपने आग धरती , मेह बरसो रे