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फूल हैं हम हाशियों के / यश मालवीय

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कवि: यश मालवीय

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* चित्र हमने हैं उकेरे

आँधियों में भी दियों के,

हमें अनदेखा करो मत

फूल हैं हम हाशियों के ।



करो तो महसूस,

भीनी गंध है फैली हमारी,

हैं हमी में छुपे,

तुलसी – जायसी, मीरा – बिहारी,



हमें चेहरे छल न सकते

धर्म के या जातियों के ।



मंच का अस्तित्व हम से

हम भले नेपथ्य में हैं,

माथे की सलवटों सजते

ज़िंदगी के कथ्य में हैं,



धूप हैं मन की, हमीं हैं,

मेघ नीली बिजलियों के ।



सभ्यता के शिल्प में हैं

सरोकारों से सधे हैं,

कोख में कल की पलें हैं

डोर से सच की बँधे हैं,



इन्द्रधनु के रंग हैं,

हम रंग उड़ती तितलियों के ।



वर्णमाला में सजे हैं

क्षर न होंगे अग्नि-अक्षर,

एक हरियाली लिये हम

बोलते हैं मौन जल पर,



है सरोवर आँख में,

हम स्वप्न तिरती मछलियों के ।