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इश्क़ को बे-नक़ाब होना था / जिगर मुरादाबादी
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इश्क़ को बे-नक़ाब होना था
आप अपना जवाब होना था
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रन्गा-रंग
उस को सादा किताब होना था
हमने नाकामियों को ढूँड लिया
आ ख़िरश कामयाब होना था