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इश्क़ को बे-नक़ाब होना था / जिगर मुरादाबादी
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हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:32, 3 मई 2009 का अवतरण
इश्क़ को बे-नक़ाब होना था
आप अपना जवाब होना था
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रंगारंग
उस को सादा किताब होना था
हमने नाकामियों को ढूँढ लिया
आख़िर इश्क कामयाब होना था