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धीमे / नरेश चंद्रकर

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वे मेरे पैर हैं
हवा से बातें नहीं कर सकते
घोड़े के पैरों से अलग हैं

कमरे की छत में क़ैद -- यह आवाज़ हैं

शब्द -- टपकते जामुन
मौलश्री के पत्ते
गिलहरी के पैर
पानी की लकीर
सितार का तार
घोड़े की पूँछ का एक लम्बा-सा महीन
पर, छरहरा-सा केश - कुछ भी समझें

मुझ तक पहुँचने के लिए
गीत गुनगुनाते
हथेलियों पर तमाखू पीटते
होठों में उसे दबाते हुए
आया जा सकता है

आवाज़ के रास्ते पर चलकर लाते हैं
ध्वनि-संदेश मेरे कान
मेरी ग्रीवा घुमावदार है अभी
इस्पात का पाईप होने से बची हुई
कतार में आगे हों आप
आपकी गरदन के केशों में
उलझी होंगी मेरी आँखें
आपकी कमीज़ के
वस्त्र-अभिकल्प को सराहेंगी
रत्न-जड़ित सिंहासन खाली होने का एहसास नहीं है
लाखों के खाली चेकों पर
हस्ताक्षर के लिए उतावले नहीं हैं मेरे हाथ
कहीं पहुँचने के लिए
घड़ी की सूइयाँ ठीक नहीं करनी हैं

इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की
सर्दियों की धूप पर या
सदी के पहले दिन पड़ने वाले रविवार पर
बातें की जा सकती हैं

अपनी टेबिल पर पड़े काग़ज़ों की उलट-फेर में
दराज़ में कोई ज़रूरी फ़ाईल ढूंढ़ने में
शेयर-बाज़ार की अर्ज़ियाँ भरने में
जिसे देखेंगे आप वह मैं नहीं
मेरा जिन्न होगा

मैं तो अपने जिन्न की सुनूँ इसके अव्वल
धीमी-धीमी बरसात में
संगीत में,
बातों में,
धीमे-धीमे किए जा रहे कामों में कहीं देखता रहूंगा

हरसिंगार के फूल बरस रहे हैं या
कंचन बरसा रहा है मेघ!!