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गंध / अभिज्ञात

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लोकल ट्रेन के वेंडर में अचक्के ही मैं
चढ़ गया
और यह एक बड़ा करिश्मा था
कि बगैर किसी युद्ध के लोकल में मैं चढ़ गया था
देर रात तक मैं सोचता रहा आज नहीं है शनि, रवि या कोई सरकारी अवकाश
फिर कैसे और कैसे हुआ यह
करिश्मा कि मैं बगैर उतारे अपना चश्मा
बैग में रखे बिना अपना मोबाइल
चढ़ गया डिब्बे में
अन्दर का पूरा परिवेश मेरे लिए विस्मयकारी था
एक ऐसी दुनिया थी अजब गंधों वाली जहाँ अलग-अलग तरकारियों ने खो दिया था वर्चस्व
फटे दूध के खोये की तीखी गंध के आगे
मछलियों की गंध ले रही थी उससे मोर्चा
खाली डिब्बों में कहीं दुबकी थी दूध की हल्की महक
जो बिकने गये थे उपनगरों से कोलकाता
इन सबके बीच
फूलों की ख़ुशबू को पहचाने की शर्त लगाई जा सकती थी
जो सहमे सकुचाए थे टोकरियों में
इन सबके बीच हाकर कर रहा था प्रचार ख़ुशबूदार अगरबत्तियों का
उसके जलाए नमूनों से उठ रही थी अजब गंध
गंध का एक सामूहिक उत्सव था
जो दे रहा था मेरे दिलो-दिमाग पर एक अजब दी दस्तक
मेरे अन्दर खुल रही थी कई खिड़कियाँ
जिनकी व्याख्या यहां व्यर्थ है
क्योंकि वह काम व्याख्या नहीं कर सकती है जो कर सकती है अकेले गंध।