भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दाएँ बाएँ क्या होता है / विजय वाते
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:43, 7 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते }} <poem> दाएँ ब...)
दाएँ बाएँ क्या होता है।
बैलों ने ये कब जाना है।
पिंजरे को खोला तो पाया
मिट् ठू उड़ना भूल गया है।
रस्से बान्धो या ना बान्धो,
ऊँट कहाँ जाने वाला है।
हाँकोगे जिस ओर उसे तुम,
उस जानिब वो चल पड़ता है।
बचपन से सीखा है 'वाते'
सरल राह सीधी रेखा है।