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मैं और मेरा ख़ुदा / मुनीर नियाज़ी

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लाखों शक्लों के मेले में तन्हा रहना मेरा काम|
भेस बदल कर देखते रहना तेज़ हवाओं का कोहराम|

एक तरफ़ आवाज़ का सूरज एक तरफ़ इक गून्गी शाम,
एक तरफ़ जिस्मों की ख़ुश्बू एक तरफ़ इस का अन्जाम|

बन गया क़ातिल मेरे लिये तो अपनी ही नज़रों का दाम,
सब से बड़ा है नाम ख़ुदा का उस के बाद है मेरा नाम|

[शक्ल = चेहरा; तन्हा = अकेला; कोहरम = शोर शराबा]
[अन्जाम = अंत; क़ातिल = मारने वाला; दाम = कीमत]