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चमन में रंग-ए-बहार उतरा तो मैंने देखा / मुनीर नियाज़ी

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चमन में रंग-ए-बहार उतरा तो मैंने देखा|
नज़र से दिल का ग़ुबार उतरा तो मैंने देखा|

मैं नीम शब आज़मा के हसरत को देखता था,
चमन में वो हुस्न ज़ार उतरा तो मैंने देखा|
 
ख़ुमार मय थी वो चेहरा कुछ और लग रहा था,
डम-ए-सहर जब ख़ुमार उतरा तो मैंने देखा|
 
गली के बाहर तमाम मंज़िल बदल गये थे,
जो साया एक कू-ए-यार उतरा तो मैंने देखा|

इक और दरिया का सामना था 'मुनिर' मुझ को,
मैं एक दरिया के पार उतरा तो मैंने देखा|