भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इश्क़ सुना है हमने बहुत/ विनय प्रजापति 'नज़र'

Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:09, 9 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र' }} category: गीत <poem> '''लेखन वर्ष: 2004 ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लेखन वर्ष: 2004

इश्क़ सुना है हमने बहुत
ज़रा करके तो देखें
मिल जाये कोई कमसिन हसीना
उसपे मरके तो देखें
हाए रे हाए, हाए रे हाए
इश्क़ करके तो देखें

सुना है हसीं होता है इश्क़
इश्क़ में सभी मौसम हसीं हो जाते हैं
ख़ुश्बू है कोई, हाथों से छुई
मुरझाये गुल, ताज़ा-तरीं हो जाते हैं

मिल जाये कोई कमसिन हसीना
उसपे मरके तो देखें
हाए रे हाए, हाए रे हाए
इश्क़ करके तो देखें

कोई फुलझड़ी, कोई रूबीना
कभी तो पास आये, लौ से लौ लगाये
आये ज़रा, लगके मेरे गले
दिल की प्यास बुझाये, बे-तस्कीं मिटाये

अब तक हसीं, देखे कई
वह तो इनमें नहीं हैं
हाए रे हाए, हाए रे हाए
वह तो और कहीं हैं

कमबख़्त यह दिल परेशाँ
जलता है ख़ुद, मुझको जलाता भी है
ऐ मेरे ख़ुदा क्या मुझसे गिला
तू क्यों मुझको उससे मिलाता नहीं है

इश्क़ सुना है हमने बहुत
ज़रा करके तो देखें…