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वह दिल में एक मस्जिद है/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: 2003

वह दिल में एक मस्जिद है
जिसमें रोज़ नमाज़ अदा करता हूँ
वह मन मन्दिर की देवी है
जिसकी साँझ-सवेरे पूजा करता हूँ

मैं ख़तावार हूँ गुनाहे-इश्क़ का
उसके दर पे रोज़ सजदे करता हूँ
वह संगदिल है नरम दिल भी
अपनी जान उसके सदक़े करता हूँ

मैंने उसके नाम से जीना जाना है
मैं बेपनाह उससे मोहब्बत करता हूँ
सारे जहाँ में वह ख़ुदा है मेरा
मैं सिर्फ़ उसकी अक़ीदत करता हूँ

मैं तलबगार हूँ उसके दिल का
अपना यह दिल उसके नाम करता हूँ
वह सिर्फ़ो-सिर्फ़ मेरा है बस
मैं हर मुक़ाबिल को पैग़ाम करता हूँ

” कोई एक भी नहीं मुझसा ज़माने में
  एक दौर गुज़ार दोगे आज़माने में
  हर हाल में जीतना मेरी फ़ितरत है
  सौ उम्र लगा दोगे मुझको मिटाने में “