हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा/ विनय प्रजापति 'नज़र'
लेखन वर्ष: 2004
हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा
तुझे ढूँढ़ने वाली यह नज़र तन्हा
यूँ तो तेरी तस्वीर है दिल में मगर
फिर भी यह दीवारो-दर तन्हा
घर में हम हैं और आईना भी है
बिन तेरे हम दोनों यह घर तन्हा
तुम्हें देखा आज फिर रू-ब-रू, सामने
तुम्हें न दिखा हूँ इस क़दर तन्हा
बिन तुम्हारे इस तरह तन्हा हूँ
जैसे बिन फूलों के कोई शज़र तन्हा
बिन तुम्हारे कहीं दिल लगता नहीं
तुम बिन मैं जाऊँ किधर तन्हा
तुम नहीं तो यूँ लगता है मुझको
मैं हूँ आज भी शहर-ब-शहर तन्हा
जलेंगे सारी-सारी रात आज फिर हम
रहेगी आज फिर रहगुज़र तन्हा
गर तेरी यादें न होती तो क्या कहूँ मैं
जाता ज़िन्दगी का हर पहर तन्हा
दरिया का पानी बाँध दिया है किसी ने
बिन पानी हुई यह नहर तन्हा
न चाँद हँसा न खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> मुस्कुराया
तुम बिन यह शामो-फ़ज़िर<ref>शाम और भोर</ref> तन्हा