भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता क्या है? / प्रभाकर माचवे
Kavita Kosh से
घनश्याम चन्द्र गुप्त (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:58, 31 अगस्त 2006 का अवतरण
कवि: प्रभाकर माचवे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
कविता क्या है? कहते हैं जीवन का दर्शन है - आलोचन,
(वह कूड़ा जो ढँक देता है बचे-खुचे पत्रों में के स्थल)।
कविता क्या है ? स्वप्न श्वास है उन्गन कोमल,
(जो न समझ में आता कवि के भी ऐसा है वह मूरखपन)
कविता क्या है ? आदिम-कवि की दृग-झारी से बरसा वारी-
(वे पंक्तियाँ जो कि गद्य हैं कहला सकती नहीं बिचारी) !
हेमन्ती सन्ध्या है, सूरज जल्दी ही डूबा जाता है-
मन भी आज अकारज चिर-प्रवास से क्यों ऊबा जाता है ?
फ़सल कट गयी, कहीं गडरिया बचे-खुचे पशु हाँक रहा है,
सान्ध्य-क्षितिज पर कोई अंजन, म्लान-गूढ़ छवि आँक रहा है ।
बचे-खुचे पंछी भी लौटे, घर का मोह अजब बलमय है,
मानव से प्रकृति की छलना, प्रकृति से मानव छलमय है !