भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाँ / प्रकाश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:45, 12 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} <Poem> जितनी देर मैं हाँ करता रहा उ...)
जितनी देर मैं हाँ करता रहा
उतने क्षण जीवन था
ऐसा नहीं कि हाँ से आता जीवन
उजला ही था
कुछ ऎसी भी रातें थीं
जिनमें चांद अनुपस्थित था
मैंने जब भी किसी ना को हाँ कहा
एक छोटा तारा झलकता देखा
खिड़की से दूर
एक पहाड़ के सिर पर सिर उठाता!