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राबिता क्या ज़रा नहीं होगा / प्रेम भारद्वाज

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राबिता क्या ज़रा नहीं होगा
हमसे जो वास्ता नहीं होगा

यूँ चले हैं कि बच तो जाएँगे
राहबर क़ाफ़िला नहीं होगा

देख वीरानियाँ मुँडेरों से
काग भी बोलता नहीं होगा

कैक्टसों से घिरी हुई तुलसी
कोई भी देखता नहीं होगा

कोई दादी के बाद आँगन में
दाना भी डालता नहीं होगा

हश्र यह देख गुल का, कलियों में
खिलने का हौसला नहीं होगा

आएगी जब घड़ी बिछोड़े की
जिस्म भी आपका नहीं होगा

प्रेम से राह फिर निकालोगे
जब कोई रास्ता नहीं होगा