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आदमी - 2 / पंकज सुबीर
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प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:09, 20 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सुबीर }} <poem> कल उसने सचमुच चौंका दिया था मुझक...)
कल उसने सचमुच चौंका दिया था मुझको
यह कह कर कि तुम एक बेईमान आदमी हो.....।
हतप्रभ रह गया था मैं,
क्या बेईमान होना, और आदमी होना,
दो अलग अलग बातें हैं ....?
और यदि हैं,
तो आख़िर फर्क क्या है....?
बेईमान होने में
और आदमी होने में ....?