Last modified on 23 मई 2009, at 17:13

बिजली का खम्भा / इब्बार रब्बी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 23 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इब्बार रब्बी |संग्रह=वर्षा में भीगकर / इब्बार र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह चलता गया
और अंधेरा पाकर
चूम लिया बिजली का खम्भा
काले लोहे का ठंडापन।

क्यों चूमा उसने
बिजली के अंधे कंधाबरदार को
ढोएगा जो
उलझे तारों की
सती
निगेटिव-पाजेटिव धाराएँ।

इस सवाल का जवाब
दर्शनशास्त्रियों,
बुद्धिजीवियों
या केन्द्रीय मंत्रिमंडल के
किसी भी मंत्री
के पास नहीं है।

32 खंभे हैं सड़क पर
इसे ही पसंद किया उसने
और्रों के पास नहीं फ़ालतू वक़्त
रोशन हैं सब
इसने तुड़वाया बल्ब
बच्चों की गुलेल से
ताकि वह रात में आए
और चूमकर चला जाए।

इसके बस का नहीं चलना
उसके बस का नहीं रुकना।


रचनाकाल : 1967