भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गँजन सुगुँज लग्यो तैसो पौन पुँज लग्यो / पद्माकर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:46, 31 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्माकर }}<poem> गँजन सुगुँज लग्यो तैसो पौन पुँज लग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गँजन सुगुँज लग्यो तैसो पौन पुँज लग्यो ,
दोस मनि कुँज लग्यो गुँजन सोँ गजि कै ।
कहै पदमाकर न खोज लग्यो ख्यालनि को ,
सालन मनोज लग्यो बीर तीर सजि कै ।
सूखन सुबिँब लग्यो दूखन कदँब लग्यो ,
मोहि न बिलम्ब लग्यो आई गेह तजि कै ।
मीजन मयँक लग्यो मीतहू न अँक लग्यो ,
पँक लग्यो पायन कलँक लग्यो बजि कै ।


पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मलहोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।